Uttarakhand: उपनल कर्मचारियों से जुड़े मामले में प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका, एसएलपी खारिज
प्रदेश के उपनल कर्मचारियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में प्रदेश सरकार को झटका लगा है। राज्य के 25000 कर्मचारियों से जुड़ा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की एसएलपी खारिज कर दी है।
2018 में हाईकोर्ट ने उपनल कर्मचारियों के लिए नियमावली बनाने का आदेश दिया था। जिसमें राज्य सरकार से कहा था कर्मचारियों के लिए जब तक नियमावली नहीं बनती है, समान कार्य के लिए सम्मान मानदेय दिया जाए। प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चली गई थी।
सरकार ने अदालत में यह तर्क दिया था कि कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। इस पर उपनल संघ ने सवाल उठाया कि जहां एक ओर सरकार महंगे वकीलों पर लाखों रुपये खर्च कर रही है, वहीं अल्प वेतन पर काम कर रहे कर्मचारियों के हितों की अनदेखी कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल उपनल कर्मचारियों के संघर्ष को मान्यता दी, बल्कि सरकार को आदेश दिया कि कर्मचारियों को अब चरणबद्ध तरीके से नियमित किया जाए।
उत्तराखंड उपनल संविदा संघ ने इस जीत को सभी कर्मचारियों की सामूहिक एकजुटता का परिणाम बताया है। कुंदन सिंह बनाम उत्तराखंड सरकार मामले में संघ ने वर्षों से यह लड़ाई लड़ी है।
संघ के जिला अध्यक्ष हरीश नग़ी ने कहा, “जिन कर्मचारियों ने इस संघर्ष के लिए आर्थिक सहयोग दिया, वे हमेशा आभारी रहेंगे।” वहीं, प्रदेश अध्यक्ष मनोज शर्मा ने इस जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अधिवक्ता का आभार व्यक्त किया।
जिला महामंत्री अनिल कोठियाल ने उन सभी कर्मचारियों और समर्थकों का धन्यवाद किया जिन्होंने इस संघर्ष पर विश्वास बनाए रखा। उन्होंने कहा, “हम उन आलोचकों का भी धन्यवाद करते हैं जिन्होंने हमें मजबूत बनाने में योगदान दिया।”
अब सरकार के सामने चुनौती
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकार के सामने अब कर्मचारियों को नियमित करने की चुनौती खड़ी हो गई है। सरकार को जल्द ही चरणबद्ध योजना तैयार कर सभी उपनल कर्मचारियों को नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।
यह फैसला न केवल उपनल कर्मचारियों के अधिकारों की जीत है बल्कि राज्य सरकार के लिए एक बड़ा सबक भी है कि कर्मचारियों के हितों की अनदेखी करना अब संभव नहीं है।